Monday, December 31, 2007

बावरा! हूँ ना?

सुन!
बावरा हो गया हूँ मैं,
या कह ले
बावरा हूँ मैं।
जिसे पाँच साल
देखा, चाहा, पूजा
उसे हटा चुका हूँ
दिल-दिमाग से
और
तेरी फोटो
आज चुपके से देखी
अलबम में
और
सोचने लगा हूँ तुझे,
तेरे नैन-नक्श,
तेवर, नखरे
सब गढ डाले हैं।

अब
तू हीं कह
शादी करेगी इस बावरे से?
देख!
वह करना चाहता थी
पर......।

बता!
कैसे करेगी शादी.......
यकीन भी कर पाएगी
मुझ पर,
जबकि
मैं भी नहीं करता !!

सच में-
बावरा हूँ मैं,
हूँ ना?


-विश्व दीपक 'तन्हा'

3 comments:

रंजू भाटिया said...

बहुत सुंदर लिखा है अपने सीधे दिल से दिल की बात ,ज़िंदगी की एक सचाई ..अच्छा लगा इसको पढ़ना !!

Gaurav Shukla said...

अरे तनहा जी, इतना सारा लिख डाला और हमें पता भी नहीं चला

बावरा कर के मानोगे क्या?

"यकीन भी कर पाएगी
मुझ पर,
जबकि
मैं भी नहीं करता "

बहुत अच्छी बात कही

सस्नेह
गौरव शुक्ल

Rahul said...

waah waah kavi ji... isse kehte hain progressive thinking. kisi ki photo kya dekh liye album mein, shaadi tak ka soch liye !!

waise.. kiski photo dekhe?? :D